kon ho tum..

क्या ये कमरे मे प्रकाश डिम है या ,
आईने में मेरा उलटा प्रतिबिंब है।
मैं पूछता हूँ उससे दाहिना हाथ उठा कर ,
कि ऐ दोस्त कौन हो तुम ❔
वो प्रत्युत्तर में बाँया हाथ उठाता है और ,
मुझसे प्रश्न करता है कि
भाई तुम कौन हो ❔
असमंजस में पड़ने का सवाल नहीं है।
क्या इस आईने जैसा दुनिया का हाल नहीं है।
हरेक व्यक्ति को दूसरा यहाँ उलटा लगता है,
मुझे बताओ कौन है यहाँ जो सीधा चलता है।
दूसरों को उलटा देखना बंद करो ,
पहले खुद की गलतियां दफन करो ।
ये जो सब तुम्हें उलटे लगते हैं ,
असल में ये सब तुम्हारे प्रतिबिंब हैं,
देख कर सबको खुद को बदलो
ये सब तुम्हारी प्रगति के चिन्ह हैं।
ये सोच कर निकल
आगे बढ़ गिर के संभल ।
सफलता तेरे कदम चूमेगी
स्रष्टी भी संग तेरे झूमेगी ।

Comments

Popular posts from this blog

Bewafai ki baad..बेवफाई के बाद